थोड़ी उमर है सूना सफर है मेरा न साथ कोई

यदि वास्तविक मुकेश के स्वर का आनंद लेना हो तो आपको शंकरजयकिशन के संगीत घर मे प्रवेश करना ही होगा!मेरा यह आशय कदापी नही कि अन्य संगीतकारो के साथ उनका गायन अच्छा नही था!किन्तु उनका विशिष्ठ गायन शंकरजयकिशन की संगीत शैली में एक अनोखा रूप ले लेता था।मुकेश के संगीतकार शंकरजयकिशन के संगीत में गाये गीतों ने ही उन्हें उस स्थान पर स्थापित कर दिया जिसका दीवाना अतिं विशिष्ठ उच्च वर्ग था।इसका मूल कारण था मुकेश के इन गीतों में जीवन का दर्द व सच्चाई होती थी,इन गीतों में दार्शनिक भाव होता था!यही कारण है पूरी फिल्म में चाहे मुकेश का एक ही गीत हो किन्तु वह फ़िल्म के अन्य सभी गीतों पर भारी पड़ता था।यह शंकरजयकिशन व मुकेश की बेहतरीन केमिस्ट्री थी,उस पर शैलेन्द्र अथवा हसरत जयपुरी के लिखे गीत हो तो वह सोने पर सुहागा बन जाते थे,ऐसा ही एक गीत फ़िल्म आह में था जिसे जनाब हसरत जयपुरी साहिब ने लिखा था-----
रात अंधेरी दूर सवेरा
बर्बाद है दिल मेरा
यह हताश व निराश मानव की सौंच को दर्शाता एक कालजयी गीत है।इस गीत में निराश मानव को रात अंधेरी तथा दूर सवेरा नज़र आ रहा है क्योकि उसका हृदय लूट चुका है ,बरबाद हो चुका है?जबकि यह भ्रम है!रात्री का भी समय होता है तथा भोर का भी निश्चित समय होता है किन्तु निराश मानव की व्यथा को प्रकट करना ही इस गीत का उद्देश्य है जिसे हसरत जयपुरी ने बहुत ही खूबी से अंजाम दिया है।
आना भी चाहे आ न सके हम कोई नही आसरा
खोयी है मंज़िल रस्ता है मुश्किल चांद भी आज छुपा...
जीवन मे प्रायः ऐसा होता है कि हम चाहकर भी अपनी चाहे पूरी नही कर पाते!कही आना जाना भी चाहे तो वैसा भी नहीं कर पाते,यही कशमकश हमे दर्द भी देती है जो हमसे जाने अनजाने में कहला बैठती है...कोई नहीं आसरा!
मंजिले खो जाती है,रास्ते कष्ट भरे हो जाते है,कमबख्त चांद भी इन अंधेरी रातों में कही जाकर छिप जाता है,यही तो जीवन है जिसमे अमावस्या भी है तो पूर्णिमा भी है।होता यह है कि अशांत समुंदर में चंद्रमा सम्पूर्ण दिखाई नही देता किन्तु शान्त समुंदर में उसका पूर्ण प्रतिबिंब दिखाई देता है!मजे की बात यह है कि चंद्रमा के कारण ही समुन्दर शांत व अशांत होता है।शंकरजयकिशन,मुकेश व हसरत जयपुरी ने इन्ही सभी निराशाओं को प्रकृति से जीवन को जोड़कर एक अनूठी रचना का निर्माण किया है।आह फ़िल्म क्यो हिट नही हुई यह मेरा विषय नही है किन्तु इस फ़िल्म के सभी गीत आज भी सुपरहिट है यह मेरा विषय है,क्योकि इनके जनक शंकरजयकिशन थे।
आह भी रोये राह भी रोये सूझे न बाट कोई
थोड़ी उमर है सूना सफर है मेरा न साथ कोई
सब तरफ घोर निराशा है कोई राह नज़र ही नही आ रही है,थोड़ी सी उमर लिए सुने सफर में अकेले मानव के साथ कोई नही है?यही तो जीवन की "आह" है जिसका अहसास समय गुजर जाने के बाद होता है।
अपने आपको जानो----यह प्रसिद्ध ग्रीक संदेश आज भी उतना ही सत्य है जितना सुकरात के समय मे था।इस संसार सागर में अपनी जीवन रूपी नैया को बिना ज्ञान की पतवार के खेना असंभव सा है।जिस तरह मृग अपनी नाभि से आने वाली कस्तूरी की खुशबू को जान नही पाता और उसे पाने के लिए जगह जगह भटकता है,उसी तरह आज मनुष्य भी अपने अस्तित्व के केंद्र आत्मतत्व को पहचान नही पा रहा है!तभी तो उसे रात अंधेरी व सवेरा दूर नज़र आ रहा है।
मुझे कई बार सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि इस प्रकार के गीत आज क्यो नही बनते!क्यो मुकेश जैसे स्वर नही मिलते,क्यो हसरत जयपुरी जैसे गीतकार नही मिलते और क्यो सदा संगीतप्रेमी शंकरजयकिशन को ही याद करते है?सीधा सा जवाब है यह आत्मवंचना का युग है स्वस्थ स्पर्धा का नही!चाटूकारिता का युग है स्पष्ठवादिता का नही!जो खरा है वही तो स्वर्ण है!उसे किंतना भी खंडित कर दो उसका प्रत्येक कण स्वर्ण ही होगा।शंकरजयकिशन ऐसे ही स्वर्णिम संगीतकार थे जिनके संगीत की स्वर्णिम आभा आज भी संगीत जगत को प्रकाशित कर रही है।

Writer : Shyam Shanker Sharma
Jaipur,Rajasthan.
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