शंकर जयकिशन:शाश्वत संगीत के कालजयी प्रणेता

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लेखक


द्वारका प्रसाद खाम्बिया


सामान्यतः कम फिल्मों में अच्छा संगीत देना संभव है परन्तु अधिक से अधिक फिल्मों में लोकप्रियता की बुलंदियों वाला संगीत अविराम व सतत 21 वर्षों तक देना ईश्वरीय वरदान है कहा जा सकता है। ऐसे वरदान से ईश्वर ने संगीतकार शंकर जयकिशन को नवाजा था। अपने नायाब संगीत द्वारा देश के साथ विदेशों में भी धूम मचा देने वाले वे प्रथम संगीतकार थे।


लोगों में सदैव जिज्ञासा बनी रही कि आखिर इतनी लोकप्रिय धुनों मे से कोन धुन किसकी है। यह जिज्ञासा जयकिशन जी की मृत्यु के बाद शंकर जी विरोधी समूह ने और बढ़ा दी। वे सिद्ध करना चाहते थे कि धुन जय किशन ही तैयार करते थे । लोगो में भी यह जानने की इच्छा प्रबल होने लगी कि आखिर जयकिशन की रचनाएं कोन सी है। कुछ पुष्ट जानकारियों के आधार पर ज्ञात होता है कि निम्नांकित कुछ लोकप्रिय धुनों को जयकिशन ने ही रचा था -

1 जीना यहां मरना यहां (मेरा नाम जोकर)
2 तुम जो हमारे मीत न होते (आशिक)
3आजा सनम मधुर चांदनी में हम (चोरी चोरी)
4 आवाज दे के हमें तुम बुलाओ (प्रोफेसर)
5 इस रंग बदलती दुनियां में (राजकुमार)
6 तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (ससुराल)
7 ऐ मेरे दिल कहीं और चल (दाग)
8 सुनो छोटी सी गुड़िया की लम्बी कहानी (सीमा)
9 दिल अपना और प्रीत पराई (दिल अपना और प्रीत पराई)
10 देखा है तेरी आंखों में प्यार ही  (प्यार ही प्यार)
11 आए बहार बन के लुभा के (राजहठ )
12 दिल के झरोखे में तुझ को (ब्रह्मचारी)
13 ओ मेरे शाहेख़ुबा ओ मेरी (लव इन टोकियो)
14 कहे झूम झूम रात ये सुहानी (लव मैरिज)
15 अजी रूठ कर अब कहां जाइएगा (आरज़ू)
16 रसिक बलमा (चोरी चोरी)
17 ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर (संगम)

ये गीत जयकिशन की संगीत रचनाओं की झलकी मात्र है।

परन्तु आम जनता श्रोता उन्हें उन्हें एकीकृत रूप में देखता है। भारतीय हिन्दी फिल्म संगीत के गौरवशाली इतिहास के पृष्ठों पर जिन महान संगीतकारों के नाम स्वर्णिम अक्षरों अंकित है उनकी जगमगाती पंक्ति में शंकर जयकिशन का नाम निर्विवादत: सर्वत्र मुख व अग्रणी रूप से परि गणित किया जस सकता है।

उनके जादुई संगीत ने जहां एक ओर परंपरा और आधुनिकता के मध्य अभूतपूर्व सेतु का निर्माण किया वहीं दूसरी ओर अपनी विलक्षण प्रतिभा द्वारा वाद्ययंत्रों के कुशल इस्तेमाल,नूतन प्रयोगों,भावानुकूल गीतों के संयोजन तथा शास्त्रीय व पाष्छ्यात संगीत के बेजोड़ तालमेल द्वारा जून अनगिनत सरस,मधुर, कर्ण प्रिय व मनमोहक कालजयी गीतों का सृजन किया।वे न केवल भारत वरन् समूची दुनियां में फैले बेशुमार संगीत प्रेमियों के लिए सचमुच बेहद अनमोल धरोहर है।

बहुत कम प्रतिभा ऐं ऐसी होती है जिनको कालजयी होने का सौभाग्य नियति प्रदान करती है।शंकर जयकिशन का शुमार ऐसी ही कालजयी प्रतिभाओं में किया जा सकता है।वे न केवल अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय संगीतकार रहे बल्कि यह कहना किंचित भी अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि उनका मधुर संगीत आज भी प्रासंगिक होकर अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखे हुए है।उनके द्वारा रचित बेमिसाल गीत आज भी दुनियां भर के संगीत प्रेमियों के कानों में रस घोलते है।

एक लोक प्रसिद्ध कहावत है कि जोड़ियां ऊपरवाला ही बनाता है ।शादी के संदर्भ में ख्यात यह कहावत संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन पर सौ फीसदी खरी उतरती है। निः संदेह यह जोड़ी संगीत की नैसर्गिक प्रतिभा से संपन्न थी और नियति ने ही दोनों को मिलता भी। शंकर जी जहां नृत्य कला,सितार,पियानिं एवं अकोर्डियान बजाने में पारंगत थे तो वहीं जयकिशन जी हारमोनियम वादन में सिद्ध हस्त थे।हिंदी फिल्म संगीत की दुनियां में इस जोड़ी का मिलन ' मणि कांचन ' सिद्ध हुआ। उल्लेखनीय है कि जयकिशन दाया भाई (4 नवंबर 1932) मुंबई काम की तलाश में आए थे जहां उनकी मुलाकात दक्षिण आंध्र प्रदेश(तेलंगाना) से आए शंकर सिंह रामसिंह(15 अक्टूबर 1922)से गुजराती फिल्म निर्माता चंद्रवदन काम के सिसिले में हुई।शने: शने: यह मुलाकात प्रगाढ़ मेत्री में तब्दील हो गई।विपरीत स्वभाव इसके इन दो व्यक्तित्वों का संगीत के प्रति समर्पित भाव उभयनिष्ठ था। गठीले बदनवाले शंकर जहां धीर गंभीर स्वभाव के थे तो वहीं जयकिशन जी मस्तमौला प्रकृति के आकर्षक व्यक्तित्व के धनी इंसान थे।

शंकर जयकिशन के बृहद संगीत के कई आयाम है जो उनको अन्य संगीतकारों स्की तुलना में विशिष्ठ स्थान आसीन करते है।उनके बेमिसाल संगीत को कतिपय शीर्षकों के तहत वर्गीकृत करते हुए सुगमतापूर्वक समझा जा सकता है। ये शीर्षक इस प्रकार ही सकते है जैसे शास्त्रीय रागों पर आधारित गीत,लोक संगीत आधारित,सुकुमार भावाभिव्यक्ती प्रधान गीत,प्रेम व रूमानी भाववाले ,विरह दर्द वाले गीत,समूह गीत,नृत्य प्रधान गीत,ग़ज़ल शैली गीत,कव्वाली शैली गीत,भारतीय संगीत आधारित नृत्य गीत,पाध्छ्यात संगीत आधारित नृत्य गीत,भजन रूपी गीत, बाल गीत,प्रश्न/पहेली नुमा गीत, छेड़ छाड़ वाले गीत,हास्य प्रधान गीत,अनोखे/अटपटे बोल वाले गीत,भारतीय व पाष्छ्यात फ्यूजन गीत आदि।

समग्रहतः यह सुस्पष्ट होता है कि शंकर जयकिशन के बहुरंगी गीतों का एक व्यापक अत्यंत और विस्तृत संसार है जिसने विविध भावों को अनुकूल संगीत धुनों के साथ कुशलता पूर्वक संवारा गया है।इं मनमोहक व कर्णप्रिय गीतों का कलेवर सजाने संवारने में इस संगीत निपुण जोड़ी के दक्ष निर्देशन की भूमिका प्रमुखत : रही है।
लेकिन विविध का संगीत नियोजन करने में दत्ता राम व अरेंजर सेबेस्टियन की भूमिका भी अहम हुआ करती थी साथ ही विभिन्न वाद्ययंत्र वादकों का महती योगदान रहा है,जिनके वाद्यों ने शंकर जयकिशन के गीतों की प्राण वान बनाकर लोकप्रियता के बेमिसाल आयाम प्रदान किए

शंकर जयकिशन के विशाल ऑर्केस्ट्रा में एक से बढ़कर कुशल वाद्य यंत्र वादकों का शुमार रहा । कुछ के नाम उस प्रकार है -

1 पन्नालाल घोष (बांसुरी)
2 लाला गंगवाने ( ढोलक)
3 उस्ताद अली अकबर खां (सरोद)
4 पं राम नारायण (सारंगी)
5 उस्ताद रईस खां (सितार )
6 एस हज़ारा सिंह(इलेक्ट्रिक गिटार)
7 मनोहारी सिंह ( सैक्सोफोन)
8 चिक चॉकलेट (ट्रंपेट)
9 वी बलसारा (हारमोनियम)
10 गुडी सिरवाई( अकिर्डियान)
11 सुमित मित्रा (अकोर्डियान) आदि इत्यादि।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शंकर जयकिशन का ऑर्केस्ट्रा अत्यंत समृद्ध था उसके भीतर विलक्षण प्रतिभा वाले तथा अपने अपने वाद्यों के वादन में दक्ष कलाकार शामिल थे। इन अति निपुण व दक्ष कलाकारों के समन्वय व सहभागिता से शंकर जयकिशन ने अनगिनत अमर गीतों का सृजन किया।



             उनका ऑर्केस्ट्रा यद्दपी काफी भारी भरकम हुआ करता था परन्तु एक दम सधा हुआ था उनके ऑर्केस्ट्रा की कुछ मौलिक खूबियां गौर तलब है जैसे गीत का प्रारंभ , मध्य,और अंत समूह वायलिन वादक गीत की दिलचस्प और दिलकश बनाने में सहायक सिद्ध होता था जैसे :-


1 आ अब लौट चलें(जिस देश में गंगा बहती है)
2 दिल के झरोखे में तुझ की( ब्रम्हचारी)
3 रात के हम सफर ,( एन इवनिंग इन पेरिस)
4 मै चली मै चली(प्रोफेसर)
5 दिल तेरा दीवाना है सनम(दिल तेरा दीवाना)
6 पंछी रे ओ पंछी (हरे कांच की चूड़ियां)
7 दिल की गिर ह खोल दो ( रात और दिन) आदि
ताल प्रवाह प्रधान गीत
1 है आग हमारे सीने में ( जिस देश में गंगा बहती है)
2 हो एक बार आता है दिन (आई मिलन की बेला)
3 कैसे समझाऊं बड़ी न समझ ( सूरज) आदि
शहनाई का पार्श्व में संगीत
1 सुन बलिए ऋत है बहार की
2 दूरियां नजदीकियां बन गई ,,(दुनियां) आदि
बांसुरी का बारीक स्वर प्रयोग
1 घान चुनरी पहन ( हरे कांच की चूड़ियां,)
2 हमरे गांव कोई आएगा(प्रोफेसर) आदि

जिस प्रकार विश्व की सर्व मान्य संस्था राष्ट्र संघ है और सुरक्षा परिषद उसका महत्वपूर्ण भाग है एवं रूस,अमेरिका,फ़्रांस,ब्रिटेन *बिग फोर* कहलाते है उसी प्रकार वालीवुड रूपी विश्व के राजकपूर महत्वपूर्ण स्तम थे और शंकर,जयकिशन,शैलेन्द्र,हसरत जयपुरी भी उनके बिग फॊर तुल्य ही थे.... इन सभी ने संयुक्त रूप से अपना लोहा सिद्ध किया।

शंकर जयकिशन ऐसे पारखी जोहरी थे कि किस अभिनेता /अभिनेत्री पर किस गायक/गायिका की आवाज उचित रहेगी....बखूबी जानते थे।वे उस संबंध में बेखोप निर्णय लेते थे।इसीलिए परंपरा से हटकर दिलीप कुमार लिए मुकेश की आवाज को प्राथमिकता दी(यहूदी).राज कपूर के लिए मोहम्मद रफी (एक दिल सो अफसाने) व मन्ना डे (श्री 420,आवारा),राजेन्द्र कुमार के लिए सुबीर सेन (आस का पंछी),वैजयंती माला व राजश्री के लिए शारदा की आवाज ( सूरज, अराउंड द वर्ल्ड) का उपयोग किया।

जयकिशन एक सहृदय इंसान भी थे उन्होंने सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक को अपनी कार में उस जमाने में कई बार लिफ्ट जी जब जगजीत सिंह को जानता भी नहीं था।

काल चक्र के प्रवाह में दू:खद मोड़ उस पड़ाव पर आया जब यह जोड़ी जयकिशन की आकस्मिक मृत्यु की वजह से टूट गई । जयकिशन के जाते ही लोग भी शंकर जी से मुंह चुराने लगे यहां तक की जिनकी आंखो के वे कभी नूर थे (राजकपूर) व अन्य अवसरवादी निर्माता ,निर्देशकों ने भी उनसे दूरियां बना ली। शंकर ऐसी स्तिथि से व्यथित होकर ही कहा था -


* रहते थे कभी जिनके दिल में
हम जान से भी प्यारों की तरह,

बैठे है उन्हीं के कूचे  में,
हम आज गुनहगारों की तरह*

इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी शंकर जी ने मृत्यु पर्यन्त(26 दिसंबर 1987) तक शंकर जयकिशन बैनर के तहत ही कई फिल्मों में संगीत दिया उनमें कुछ उल्लेखनीय है दो झूठ,आत्मा राम,दुनियादारी,गोरी,गरम खून ,आज की ताजा खबर आदि।

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपने अमृतोत्सव के समय दैनिक समाचार पत्र नई दुनिया के संपादक अभय छजलानी से कहा था * शंकर जयकिशन के संगीत का फलक बहुत विशाल है।उन्होंने हर प्रकार के संगीत का सुंदर प्रयोग किया है। केवल राजकपूर ही नहीं बल्कि अन्य निर्माता,अभिनेता,अभिनेत्रियों केलिए भी उनकी मनपसंद का सुंदर संगीत दिया ...उनका संगीत निश्चित ही ..चमत्कारी और अद्भुत है*

अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि हिंदी सिनेमा जगत के संगीत के खजाने की अपनी बेमिसाल सांगीतिक रचनाओं के अनमोल रत्नों से समृद्ध करनेवाले महान संगीतज्ञ युगल शंकर जयकिशन के अप्रतिम योगदान की चर्चा के बगैर हिंदी फिल्मों का संगीत इतिहास अपूर्ण ही कहा जाएगा।

इस महान संगीत साधक युगल को आने वाली पीढ़ियां युगों युगों तक विस्मृत नहीं कर पाएगी।
उनका हृदय से स्मरण करते हुए कोटिशः नमन इन पंक्तियों के साथ -

* एक कृति जो फिर न बनेगी,
एक कमी जो हमेशा खलेगी,
एक गम जो कभी न छूटेगा,
एक शख्स जो कभी न भूलेगा *

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